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आखिर हिन्दी में दिलचस्पी की कमी क्यों

जैसे मैंने पहले भी कहा है, हालांकि हिन्दी दुनिया की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में से एक है, पर इस भाषा में दुनिया भर में बहुत दिलचस्पी नहीं है. मेरे जैसे उन लोगों के लिए यह निराशा की बात तो है जिन्हें हिन्दी में दिलचस्पी है, लेकिन बड़ी आश्चर्य की बात नहीं है. हिन्दी की तुलना में लोग अधिकतर यूरोपीय भाषाओं से अधिक परिचित होते हैं.

हालांकि, लोग दुनियाभर में भारतीय संस्कृति से परिचित हैं. योग, बॉलीवुड, हिन्दुस्तानी खाना, और हिन्दू धर्म भी बहुत लोकप्रिय है. लेकिन इन सब वस्तुओं के प्रति दिलचस्पी होने के बावजूद, जनता की हिन्दी के प्रति दिलचस्पी नहीं बढ़ी है. संस्कृति में दिलचस्पी भाषा में दिलचस्पी अब तक प्रोत्साहित नहीं कर पाई है.

अमेरिका में जनता हिन्दी के बारे में अनजान है. लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि क्या आपकी बीवी ‘हिन्दू’ बोलती है.

मेरे अनुभव में जिन लोगों की हिन्दी में दिलचस्पी होती है, उनकी दिलचस्पी बहुत अगंभीर होती है. दरअसल ऐसे लोगों की बॉलीवुड या योग आदि में दिलचस्पी है. वे ‘नमस्ते’ के अलावा कुछ नहीं सीखना चाहते.

लेकिन ऐसे लोगों की आलोचना करने की मंशा से मैं ये सब बातें नहीं लिख रहा हूं. मुझे बस थोड़ी निराशा हुई क्यूंकि मैंने हिंदी सिखाने का बहुत प्रयास किया है पर कम लोगों ने मेरे प्रयास पर ध्यान दिया है, जबकि दूसरी वेबसाइटें जिन्होंने इतना प्रयास नहीं किया है, उन्हें बहुत ध्यान मिला है. जब मैंने कारण सोचा, तो मुझे यह पता चला कि इसका कारन यह होगा कि मेरी वेबसाइट दूसरी वेबसाइटों की अपेक्षा अधिक गंभीर है, और अधिकतर लोगों की ऐसी गंभीरता में कोई रूचि नहीं है.

इस वेबसाइट पर सब लोगों का स्वागत है, उनकी हिंदी में दिलचस्पी चाहे कितनी भी क्यों न हो.

लेकिन काश कि और लोगों की हिंदी में गंभीर रूचि होती.

10 replies on “आखिर हिन्दी में दिलचस्पी की कमी क्यों”

Although there is no “neuter” gender in Hindi, there are words which can be masculine or feminine depending on the context, e.g. someone might say “मेरा दोस्त” or “मेरी दोस्त” depending on whether the friend is masculine or feminine, respectively.

सच में, आपने इस वेबसाइट पर बहुत काम किया है। और आपका किया हुआ काम बहुत अच्छा है। हतोत्साहित होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि समय एक साथ नहीं रहता। किसी भाषा में लोगों रूचि उसके देश की सफलता के अनुसार से होती है, और जैसे-जैसे भारत उन्नति करेगा, लोगों में भारतीय भाषाओं की ओर रूचि बढ़ेगी।

आप ने बहुत शानदार काम किया है। हिन्दी सीखने वालों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। किसी भी भाषा के दिन बदलने में समय नहीं लगता। अब लातिन या ग्रीक या संस्कृत को लें, इन भाषाओं को मातृभाषा के रूप में बोलने वाले नाम मात्र बचे हैं। हिन्दी, चीनी, भाषा इंडोनेशिया जैसी एशियाई भाषाओं का समय 21 सदी में शुरू हुआ है। आपको फिर से बहुत शुक्रिया।

डेविड आप निराश न हों l यह कमी हम भारतीयों की है जिन्होंने अपनी मातृभाषा को उपेक्षित किया है l आपका अनेक धन्यवाद, आपका प्रयास अति उत्तम एवं सराहनीय है l यह वेब साईट सबसे हट कर है l you know different. all the best, and please continue writing , the gape is too long, please write again.

डेविड आपका बहुत बहुत धन्यवाद , आपका प्रयास सराहनीय है l

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